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देव-सुधा

खीझे = क्रोध करने पर । रागि चुक्यो = प्रेम में मग्न हो चुका । बरजैं = रोकैं । पागि चुक्यो = लिपट चुका । लोगनि लगायो = लोगों ने (कलंक ) लगाया । जागि चुक्यो = प्रेम का ज्ञान प्राप्त कर चुका। काहू कि कोई कहावतिहौं नहिं जाति त पाँति न जातेखमौंगी, मेरियै हास कशैकिन लोग हौं कोककवि देवजू काहि हसौंगी; गोकुलचंद की चेरी चकोरी है मंद हसी मृदु फंद फँसोंगी, मेरी न बात बको वलि। कोईहौं बावरी है ब्रज-बीच बसौंगी।

खसौंगी = गिरूँगी, पतिता होऊँगी।

साँझ को-सो चंद भोर को-सो करि राख्यौ मुख, भोर की-सी कांति भाँति साँझ की-सी भई अनि

साँझ भोर को-सो नभ देखिए मलीन मन , साँझ भोर चकवा चकोर की-सी हित-हानि ।

  • मैं हूँ ही कौन, और किसे हँसूंगी ?

+ बलि जाऊँ,निछावर होऊँ ।

  • जो मुख संध्या के चंद्र-सा मनोहर था, उसे प्रातःकाल के

प्रकाश-हीन चंद्र-सा कर रक्खा है, अथच प्रातःकाल की-सी मुख-शोभा साँझ की उतरी हुई शोभा-सी हो गई।

$ संध्या तथा प्रातः का आकाश प्रकाश की कमी से मलीन- समझा गया है । शाम को चक्रवाक को तथा सुबह चकोर की हित हानि है।