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देव-सुधा

इस छंद में व्यंजना और ध्वनि-नामक काव्यांगों की अच्छी बहार है।

भारी प्रेमोद्विग्नता का वर्णन है। . सखी-वचन-तू कैसी कुल-वधू है ?

नायिका का उत्तर-कुल कैसा होता है, और कुल-वधू है कौन ? प्रयोजन यह है कि यदि शुद्ध प्रेम के कारण कुल बिगड़े या कुल-वधू होने में संदेह हो, तो लोगों द्वारा माना हुया कुल का लक्षण ही अशुद्ध है। यदि लोग प्रेमिनी का उच्चाशय समझे विना ही उसे कुलटा समझे, तो यों ही सही ; मुझे भी उनकी परवा नहीं है।

सखी-वचन-तू कुल-वधू है ।

नायिका का उत्तर-किसी कुलटा से यह कौन पूछता है ? अर्थात् मैं तो कुल के साधारण लक्षण के अनुसार कुलटा हूँ, क्योंकि अनभिज्ञ लोग शुद्ध प्रेम नहीं समझ पाते ।

सखी-वचन-तुझको क्या हुआ है ? सखी ने उसके उच्च भावों को न समझकर ही यह प्रश्न किया है।

नायिका का उत्तर-क्या ? किसको? तुझको यो मुझको या किसी और को ? और नहीं तो किसको ? प्रयोजन यह कि मुझे तो कुछ नहीं हुआ है, शायद तुम्हीं को या किसी और को हुआ हो ।

सखी-वचन-तू जाति से जाती है (पतित हुई जाती है)।

नायिका का उत्तर-जाति क्या है और कैसे जाती है ? प्रयोजन यह कि शुद्ध प्रेम से जाति नहीं जाती। यदि कोई इसके विपरीत माने, तो उसका जातिवाला लक्षण ही अशुद्ध है।

सखी-वचन-मैं तुझसे रिसाती हूँ।

नायिका का उत्तर -- तू मेरी है, मुझसे मत क्रोध कर, मैंने किया ही क्या है ?

सखी-वचन-लाज करो, निर्लज्ज मत हो।