जिन जान्यौ बेद ते तौ बाद कै विदित होंहिं,
जिन जान्यौ लोक तेऊ लीक पै लरि मगै;
जिन जान्यौ तपु तीनौं तापन सों तपौ, जिन
पंचागिनि साध्यो ते समाधिन परि मरौ ।
जिन जान्यो जोग तेऊ जोगी जुग-जुग जियौ,
जिन जान्यो जोति तेऊ जोति लै जरि मरौ;
हौं तौ देव नंद के कुमार तेरी चेरी भई,
मेरो उपहास क्यों न कोटिन करि मरौ॥१६६॥
इस छंद में कवि वेद में केवल वाद, लोक में लीक, तप में ब्रिताप, पंचाग्नि में समाधि, योग में दोर्घायु और ज्योति में उष्णता-मात्र देखता है, अथच प्रेम अथवा भक्ति को सर्व-प्रधान मानता है।
बाद विवाद । लोक =सीमा (लोक-रीति )। तीनों तापन = तीनो ताप, अर्थात् प्राध्यात्मिक, प्राधिभौतिक और आधिदैविक ।
बैठो सीस-मंदिर में सुदरि सवार ही की,
मूंदि के केवार देव छबि सों छकति है;
पीत-पट लकुट मुकुट बनमाल धरि,
भेष करि पी को प्रतिबिंब मैं तकति है।
होति न निसंह उर अंक भरि भेटिबे को,
भुजन पमारति समेटति जकति है;
चौंकति चकति उचकति चितवति चहूँ,
भूमि ललचाति मुख चूमि न सकति है ।। १६७ ॥
सवार ही प्रातःकाल से । लकुट = छड़ी।