पृष्ठ:देव-सुधा.djvu/१२०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
११६
देव-सुधा

शांति को प्राप्त हुई नायिका का वर्णन है । पचि= बहुत परिश्रम करके, पक करके।

जागत-जागत ग्वीन भई, अब लागत संग सखीन को भारो, खेलिबोऊ हँसिबोऊ कहा सुख सों बसिबो बिसे बीस बिसारो, तो सुधि दौस गँवावति देवजू जामिनि जाम मनौ जुग चारो, नीरज-मैन निहारिए नैनन धीरज राखत ध्यान तिहारो॥१६३।।

यहाँ सखी द्वारा नायिका का नायक से प्रेम निवेदन है।

बिसे बीस = बीस बिस्वा ( पूर्णतया)। भारो = भारी, बोझा, असह्य ।

पहिले सतराय रिसाय सखी जदुगय पै पाय गहाइए तौ, फिरि भेटि भटू भरि अंक निसंक बड़े खिन लौं उर लाइए तौ; अपनो दुख औरन को उपहास सबै कबि देव बताइए तो, घनस्यामहि ने कहूँ एकघरीकोइहाँलगिजोकरि पाइएतौ॥१६४।।

अभिलाषा का वर्णन है । नायिका का सखी के प्रति कथन है ।

सतराय अप्रसन्न होकर । बड़े खिन ( क्षण ) लौ = बड़ी देर तक । लाल बुनाई हौ,कोहैं वे लाल,न जानती हौतौसुखी रहिबोकरि, रीसुख काहेको देखे बिना दिखसाधन ही जियगन परो जरि देव तौजानि अजान क्यों होति यहीसुनि आँसुन नैनलएभरि, साँचेबुलाईबुलावन आईहहा कहिमोहिकहा करिहेहरि॥१६५।।

दिखसाधन ही - दर्शन की इच्छाओं से।

  • क्षीण।

+ रात के चारो पहर चारो युगों के समान हो गए हैं। $ तुम्हारा ध्यान ही उसका धैर्य रखता है।