बधिक बिहंग बधू, ब्याध ज्यौं कुरंग नारि,
हनी है कुरंग - नैनी पारधी अनंग की ;
संग-संग डोलत सखीन के उमंग - भरी, अंग-अंग उठै री तरंग स्याम-रंग को ।। १६६ ॥
गुन = डोरा । उतंग ऊँचा । कुरंग = मृग । कुरंग-नैनी = मृग-नैनी ( नायिका )।
सुखसार सिवार सरोवर ते ससि सीस बँधे बिधि के बल सों, चकई चकवा तजि गंग-तरंग अनंग के जाल परे छल सों; कमलाकर ते कढ़ि कानन मैं कल हंस कलोलत हैं कल सों3, चढ़ि काम के धाम ध्वजा फहरात सुमीनन काम कहा जल सोंx। नायिका के प्रेम-योग्य नेत्रों का वर्णन है।
सिवार = शैवाल । अनंग = कामदेव । कमलाकर = जलाशय । कल = मधुर ध्वनि ।
- बहेलिया, शिकारी।
+ नायिका के नेत्र-मीन मानो सुख-पूर्ण सरोवर के शैवाल से निकाले जाकर दैव-योग से चंद्रमा के माथे पर (नायिका के मुख-चंद्र पर ) बाँधे गए हैं।
+या कि गंगा की तरंगों को छोड़कर चकई-चकवा छल से काम के जाल में पड़े हैं।
$ अथवा जलाशय से निकलकर हंस का अच्छा जोड़ा वन में श्राराम से केलि कर रहा है।
× यद्वा ये नेत्र नहीं हैं, वरन् काम के मंदिर की दो फहराती हुई पताकाएँ हैं । अब इन नेत्र-रूपी मीनों को जल की आवश्यकता क्या है ? .