पृष्ठ:देव-सुधा.djvu/१५

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भूमिका

यह भूमिका महाकवि देव-कृत स्फुट दोहों को एकत्र करके बनाई गई है । पाठक महाशय इन कविवर के ऐसे विचार इन्हीं के शब्दों में सुनें

(१)
प्रार्थना

इंदु-कलित सुंदर बदन मनमथ-मथन-बिनोद । गोबरधन-गिरि जास बन, विहरन गोपति गोद ॥ १॥ श्रीराधे ब्रजदेवि जै सुंदर नंदकिसोर । दुरित हरौ चित के चितै नैसुक दै दृग-कोर ॥२॥ राधा कृष्ण किसोर युग पद बंदौं जग-बंद । मूरति रति सिंगार की सुद्ध सच्चिदानंद ॥३॥ श्राराधा हरि-प्रेम-बस सरस सिंगार उदार । छ रितु बारहौ मास गुन बृदा-बिपिन-बिहार ॥ ४ ॥ हरिजसरस की रसिकता सकल रसायनि-सार । जहाँ न करत कदर्थना यह अनर्थ संसार ॥ ५॥

जिसका वन गोवर्द्धन-गिरि है, और जो गउओं के स्वामी नंद प की गोद में विहार करता है।