हम तौ निहारे ते निहारे ब्रजबासिन मैं,
देव मुनि जाको पचि हारे निसि-बासरो।
भ्रम न हमारे जप संजम न करें कछू,
बहि गयो जोग जमुना-जल बिलासरो;
गोकुल गोसायनि परम सुख-दायनि,
___ श्रीराधा ठकुरायनि के पायनि को आसगे ॥२५८।।
कहा सरो= क्या हुआ । पचि हारे = परिश्रम करते-करते हार गए
(थक गए)। निहारे ते निहारे = गौर करके देखने से दृढ़ता-पूर्वक देखा।
( २६ )
देश-जाति
छिति कैसी छोनी रूप-रासि की पकोनी गढ़ि
गढ़ी बिधि सोनी गोरी कुंदन-से गात की ;
देव दुति दूनी दूनी दिन-दिन होनी और
ऐसी अनहोनी कहूँ कोई दीप सात की।
रति लागै बौनी जाकी रंभा रुचि पौनी लोच-
ननि ललचौनी मुख-जोति अवदात की।
इंदिरा अगौनी इंदु इंदीवर बौनी महा-
___ सुदरि सलौनी गज-गौनी गुजरात की ॥२५६ ।।
___ देव कहता है कि गुजरात-वधू की दूनी-दूनी कांति नित्य ही
बढ़ती है, यहाँ तक कि सातों द्वीपों ( की नायिकाओं) में और कहीं
ऐसी नहीं होनी है।
+ चंद्रमा में कमल बोनेवाली, अर्थात् यदि चंद्र की उज्ज्वलता में
कमल की कोमलता मिलाइए, तो उसके मुख की समता हो। लक्ष्मी
उससे इतनी हेय है कि उसकी अगवानी को खड़ी रहती है।
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देव-सुधा
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