प्रतीपकी मुख्यता है।
छिति= पृथ्वी । छोनी = लड़की। (पृथ्वी की अर्थात् जानकी)।
पकोनी = पकी हुई। सोनी = सुनार (स्वर्णकार ) । बौनी =
बावन अंगुल की स्त्री । पौनी = तीन चौथाई; हीनता से अभिप्राय है।
श्रगौनी = अगवानी ( पेशवाई )। गज-गौनी = गजगामिनी ।
अवदात = शुभ्र ।
जोबन के रंग-भरी ईगुर-से अंगनि पै,
डिन लौं आँगी छाजै छबिन की भीर की ;
उचके उचोहे कुच झपे झलकत झीनी
___ झिलमिली ओढ़नी किनारीदार चोर की।
गुलगुले गोरे गोन कोमल कपोल, सुधा-
बिंदु बोल इदु-मुखी नासिका ज्यौं कीर की ;
देव दुति लहराति छूटे छहरात केस ,
बोरो जैसे केसरि किसोरो कसमीर की ॥२६०।।
काश्मीर देश की युवती का वर्णन है ।
छाजै = शोभै । कीर = तोता।
तिनिहू लोक नचावति ऊक मैं मंत्र के सूत अभूत गती है ,
आपु महा गुनवंत गुसायनि पायनि। पूजत प्रानपती है ।
® टूटते तारे की एक प्रकार की जादू करके वह तीनो लोकों को
नचाती है । ऊक का कोशस्थ अर्थ उल्का है । इसे जादू के मंत्रों के
संबंध का छू के समान ध्वन्यात्मक शब्द भी मान सकते हैं । प्रयोजन
यह बैठेगा कि भानमती की जादू-पूर्ण ध्वनियों से तीनो लोक नाचते हैं।
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