पृष्ठ:देव-सुधा.djvu/१७१

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देव-सुधा
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पैनी चितौनि चलावति चेटक को न कियो बस जोगि-जती है, कामरू-कामिनि काम-कला जग-मोहनि भामिनि भानमती है। कामरू ( अासाम ) देश की जादूगरनी का वर्णन है। ऊक = उल्का ; टूटता तारा । अभूत = जो पहले न हुआ हो, अद्भुत । भानमती = जादूगरनी । चेटक = जादू । पातरे अंग उडै बिन पंखन कोयल-बानि चबानि बिरी की , जोबन रूप अनूप निहारि कै लाज मरै निधिराज सिरी की ; कौल-से नैन कलानिधि-सो मुख कोटि कलागुन की गहिरी की, बाँस के सीस अकास पै नाति कोन छक्यो छबिसोनचिरीकी। नट की स्त्री (नटिनी) का वर्णन है । बिरी = बीड़ा। निधिराज = कुबेर । सिरी = श्री = लक्ष्मी । सोनचिरी = सोने की चिड़िया, अर्थात् नटिनी । लाज मरै निधिराज सिरी की = राज्य-श्री की निधि लाज से मरती है; अथवा उसे देखकर कुबेर की लक्ष्मी की लाज मरे (भंग हो)। माखन-सो मन दूध-सो जोबन है दधि ते अधिकै उर ईठी, जा छबि आगे छपाकर छाँछ बिलोकि सुधा बसुधा सब सीठी; नैनन नेह चुवै कहि देव बुझावति बैन बियोग अँगीठी , ऐमी रसीली अहीरी अहो ! कहो क्यों न लगे मनमौ हनै मीठी। अहीरिन (ग्वालिन) का वर्णन है । ईठी इष्ट । सीठी= फीकी।

  • उस गुण-गंभीरा की करोड़ कलाएँ हैं।