अरगजे भीजी मरगजे बागे बनी ठनी ,
___ हाट पर बैठी अति ही सुघरपन सों;
इंदु-से बदन मृगमद - बुंद बेंदी भाल ,
झलक कपोल गोल दूने दरपन सों।
मैन - मद छाके नैन देव मुनि मोहैं सैन ,
सोहैं सटकारे बार कारे सरपन - सों ;
बंधु किए मधुप मदंध किए बंधु जन ,
बँध्यो मन गंधी की सुगंध-झरपन सों ।। २६८ ॥
मृगमद = कस्तूरी । मैन मद = मयन अर्थात् काम के मद में ।
मरगजे = मले । सुघरपन = चतुराई । बंधु किए मधुप = भौरों को
बंधु ( बंधुश्रा = कैदी ) किया । सुगंध के वश हो भौंरे वहीं ठहर
गए । बागे = पहनने का कपड़ा। दूने दरपन सों = दर्पण से
दूने चमकनेवाले। झरपन सों = झपटों से। सैन = आँखों का
इशारा।
दंपति एक ही सेज परे पग पींडुरी दाबि दुहूँ को रिझावति ,
आपने ओछे उठाहैं कठोर उरोजन को मलै ऍड़ी मिलावति ;
भौं हैं उमेठि रहैं ठकुराइनि ठाकुर के उर काम जगावति ,
लौड़ी अनोखी लड़ाइते लाल की पाँय पलोटै कि चोटै चलावति ।
तिल है अमोल लोल - नैनी के कपोल गोल ,
बोलत अमोल जन बारि फेरियत है;
सोभा सुने जाकी कबि देव कहै कौन को न
होत चित चीकनो चतुर चैरियत है।
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देव-सुधा