सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:देव-सुधा.djvu/१७५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
देव-सुधा
१७१
 

देव-सुधा घाट बाट हू में घट निपट बटोहिन के , नेक ही निहारे नेह - भरे हेरियत है *; सरस निदान ताके दरस की कौन कहे, पौन हूँ के परस परोसी पेरियत है। ॥ २७० ॥ तेलिन का वर्णन है । बारि फेरियत है = पानी फेरते हैं, अर्थात् नज़र उतारते हैं । निदान = श्रादिकारण । पौन = पवन । ॐ राहगीरों के हृदयों को तेरे थोड़ा ही देखने से हम खूब स्नेह- पूर्ण पाते हैं ।

  • कोल्हू तो सरसों आदि को दबाकर पेरता है, किंतु तेलिन

पड़ोसियों को अपनी वायु के स्पर्श-मात्र से पेर डालती है । अधिक अभेद रूपक के भाव की झलक है।