पृष्ठ:देव-सुधा.djvu/१७७

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विनीत वक्तव्य भारतीय भूपालों में सर्वश्रेष्ठ, सहृदय हिंदी-हितैषी, काव्य-कला के कुशल पारखी, भारतीय भाषाओं की महारानी मंजु-मधुर ब्रजबानी के परम प्रेमी, देव-पुरस्कार के प्रसिद्ध प्रदाता श्री सवाई महेंद्र महा- राजा श्रीवीरसिंहजू देव ओरछाधिपति की सेवा में- धन्यवाद मम कृति दोस-भरी खरी, निरी निरस जिय जोह- है उदारता रावरी, करी पुरसकृत सोइ । x . मधु मिलन सुधा जनक जुग मधु-मिलन सुमन-खिलन मधुमाहि; उर-उपबन मैं सुरस - कन सुख-सौरभ सरसाहिं। ब्रजबानी बर ब्रजबानी - पदुमिनी प्राचि-ओरछा - ओर- लखि तमहर प्रिय बीर-रबि खिली पाइ सुख-भोर । ब्रजबानी-घन-प्रगति-घन देस-गगन-बिच छाइ- दियौ दयालु' महेंद्रजू जन-मन मोर नचाइ । ॐ ओरछा में, वीर-वसंतोत्सव के वक्त, दुलारे-दोहावली पर देव- पुरस्कार प्राप्त कर लेने के उपरांत, पुरस्कार-प्रदाता को, दोहावलीकार द्वारा दिया गया धन्यवाद । + ओरछाधिपति की ७॥ वर्ष की कन्या और उसी उम्र की सुधा. पत्रिका । .