पृष्ठ:देव-सुधा.djvu/१९

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भूमिका
(३)
प्रेम

मायादेवी नायिका, नायक पूरुष आप। सबै दपतिन में प्रगट देव करै तिहि जाप ॥ ३०॥

छेम छिमा छिति प्रेम की हेम भरै तेहि साखि । छिद्यो भिद्यो, औंधो भर यो अंग संग अभिलाखिका ३१ ।।

दंपति सुख संपति सजत तजत विषै-विष-भूख । देव सुकबि जीवत सदा पीवत प्रेम-पियूख + ॥३२॥

नागर अरु ग्रामीन-गति समुझत परम प्रवीन । कामु कहा तिनको जु सठ कामुक हुदै मलीन ॥ ३३ ॥

तनिक झुठाई प्रेम की झूठे कुल-गुन-गोत । प्रेमीजन प्रिय प्रेम-बस जगमग जग मैं होत ॥ ३४ ॥

नव सुंदर दंपति जदपि सुख-संपति को मूल । प्रेम बिना छिन छम नहिं हेम-सलाका तूल ॥ ३५ ॥ -रोहित साव27 (वार्ता)-...-----

® सोना अंग-संग रहने की अभिलाष से अपने को छेदवाता, भिदाता तथा लटकता और साँचे में भरा जाता है।

+ जो प्रेम-पीयूष दंपति के पास होता है, उसमें विषय-विष की चाह नहीं होती। +समान। दंपति परम सुंदर क्यों न हों,परंतु यदि उनमें प्रेम नहीं है,तो उनके लिये क्षण-भर को भी कुशल नहीं है। दंपति-सुख के लिये प्रेम आवश्यक है,सौंदर्य नहीं।