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देव-सुधा


देखिए देव जबै तब ज्यों हि त्यों, दूसरी पद्धतियै न पढ़ी है, कोविरचे कुल-कानि अचमन के निहचैहिय चैन चढ़ी है ।।३६॥

दया

हाय दई यहि काल के ख्याल मैं फूल-से फूलि सबै कुम्हिलाने, देवदेव बली बल-हीन चले गए मोह की हौसहि लाने; या जग बीच बचै नहीं मोचु पे, जे उपजे ते मही मैं मिलाने, रूप,कुरूप,गुनी, निगुनी, जे जहाँ जनमे, ते तहाँई बिलाने ॥३७||

वैभव

चाँदनी महल बैठी चाँदनी के कौतुक को, चाँदनी-सी राधा-छबि चाँदनी बिसाल रैं;

चंद की कला-सी देव दासी संग फूली फिरें, फूल-से दुकूल पैन्हे फूलन को माल ।

छुटत फुहारे, वे बिमल जल झलकत, चमक चँदोवा मनि-मानिक महालरै ;

बीच जरतारन की, हीरन के हारन की, जगमगी जोतिन की मोतिन की झालर ॥३८॥

बिसाल ₹ = ( चाँदनो को ) भारो छवि हैं । यहाँ रें-शद हैं के अर्थ में पाया है।

  • जब देखिए, तभी ज्यों-को-त्यों रहती है, अर्थात् उसके चित्त

में कभी कोई अंतर नहीं पाता। + झूठी बात कौन बनावे, क्योंकि ऐसे कर्म से कुल-कानि नष्ट हो जाती है।

  • मोह की हवस होके लिये चले गए।