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पृष्ठ:देव-सुधा.djvu/४२

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देव-सुधा

उज्जल अखंड खंड सातएँ महल महा- मंडल सँवारी चंद-मंडल की चोट ही ;

भीतर ही लालनि के जालनि बिसाल जोति, बाहर जुन्हाई जगी जोतिन की जोटही।

बरनति बानी चौर ढारति भवानी, कर जोरे रमा रानी ठाढ़ी रमन की ओट ही;

देव दिगपालनि की देवी सुखदायनि ते राधा ठकुरायनि के पायन पलोटही ॥३६॥

सँवारो = सजा हुआ । चोट ही = श्राघात करनेवाला, अर्थात् स्पर्धा करनेवाला । लालनि = लाल रत्नों की। जोटही = समूह ( यूथ )। बरनति = यश वर्णन करती है । बानी = सरस्वती। महामंडल = एक बड़ा गोल स्थान, अर्थात् (सातवें खंड पर का )एक गोल कमरा । जालनि = जालीदार खिड़कियाँ । रमन की ओट ही = अपने पति की आड़ में ।

मालिनी छंद

हंसि-हंसि पहिराई आपनी फूल-माला, भुज गहि गहिराई प्रेम-वीची बिसाला;

रति-सदन अकेली काम-केली भुलानी, मनु मय यह बानी मालिनी की सुहानी ॥४०॥ मालिन-जाति की स्त्री का वर्णन है । कवि इस छंद में मालिनी

  • भज गहि बिसाला ( विस्तृत ) प्रेम-बीची (प्रेम की लहर की)

गहिराई (अगाधता ) प्रकट की । ननु-नैनू (नवनीत )।