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देव-सुधा

बधू नवऊढ़ कोनिहारि मुनि मूढ भए, बचननि बेद बिधि गूढ़ उचरत ही है।

चंद-कला च्वै परी असंग गंग है परी, भुजंगी भाजि भवै परी बरंगी को बरत ही t;

कामरिपु देव गुन दामरि पहिरि काम, कामरि करी है भुज भामरि भरत ही ॥ ४२ ।।

हिमंचल (हिमालय ) = पार्वती के पिता । अंचल = आँचल (पार्वती का ) दृगंचल = पलक । भ्व = पृथ्वी । बरंगी = उत्त- मांगी। कामरिपु = महादेव । गुन = गुनकर, जान-बूझकर । दामरि =रस्सी । कामरि = कंबल । नवऊद = नई ब्याही बधू । मुनि विवाह-कार्य कराते थे।

गूढ़ बन सैल बूढ़े बैल को गहाई गैल, भूनन चुरेल छैल छाके छबि भोज के

  • बचनों से शैव ईश्वरत्व-संबंधी ऋचाएँ पढ़ने से मुनि मूढ़ हो

गए क्योंकि शैव कामाशक्ति से उनका श्राशय संदिग्ध हो गया ।

+ सर्पिणी लटों से हारकर पृथ्वी पर गिरी । चंद्रकला पार्वती के मुख से हारकर गिर गई । प्रतीपालंकार है । गंगा छोटी बहन की सौत हो जाने से अपंग हुई, क्योंकि वह शिव के मूड़ चढ़ी हुई थीं।

+कामरिपु ( महादेव ने ) भुज भामरि भरत ही, (पाणिग्रहण करते ही मानौ ) गुन ( जान-बूझकर ) दामरि पहिरी, ( रस्सी पहनी है, अर्थात् अपने को पाश में डाला है, और ) काम कामरि करी है ( काम का कंबल ओढ़ा है, अर्थात् अपने को काम-वश कर लिया है)।

यथा कुमारसम्भवे-'पराजितेनापि कृतौ हरस्य, यो कंठपाशौ मकरध्वजेन ।"