पृष्ठ:देव-सुधा.djvu/४९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४५
देव-सुधा


जठेरी ( अप्रिय, नटखट ) तथा जम जोय ( यमराज की-सी स्त्री,प्राणाकर्षिणी )है ।

दूसरे पद में चाँदनी के साथ अमृत-पान का इसलिये कथन किया गया है कि चंद्रमा के सुधाधर होने से वह सुधाकर या सुधांशु भी है, जिससे चाँदनी के दर्शन से मानो उसका अमृत-पान होता है । नायिका को विरह-वश चाँदनी से कोई मज़ा आता नहीं, प्रत्युत चाँदनी रात में महूष की अहूष-ध्वनिवाली कर्कशता-मात्र उसके चित्त में सर्वोपरि बात रह जाती है।

केते करे सुकपोत कपोतक पिंजर - पिंजर बीच बिबादनि , को गनै चातक चक्र चकोर कला पिक मोर मगल प्रबादनि बीन ज्यों बोति बाल प्रबीन नबीन सुधा-रस-बाद सवादनिक, वारों सुकंठी के कंठ खुले पाकलकंठन के कलकंठ निनादनि।।६।।

नायिका की वाणी की प्रशंसा की गई है। बाद = संभाषण । वारौं = निछावर करूँ। सुकंठी के = एक सुंदर तोता, जिसके गले में कंठी होती है । कलकंठन के = सुंदर गलेवालों (शब्द करने वालों ) के।

  • छोटे-बड़े कबूतरों ने पिंजड़े-पिंजड़े में कितना ही विवाद

किया ( किंतु उस नायिका की वाणी की सरबरि वे न कर पाए ) ।

( उसकी वाणी के सामने ) चातक ( पपीहा ), चक्र (चकई-चकवा) और चकोर (चंद्र को ताकनेवाला पक्षी) की कला तथा पिक ( कोकिला ), मयूर एवं मराल ( हंस ) की ध्वनियाँ गिनने योग्य नहीं हैं।

$अमृत-रम का स्वाद तुच्छ है।

  • तोते का कंठ खुला कहा जाने से उसके जवान होने का

आशय है क्योंकि यौवन-प्राप्त तोते की कंठी ख ब खिलती है।