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देव-सुधा

केसरि किंसुक औ' बरनाकचनारनि को रचना उर सूली , सेवती देव गुलाब मलै मिलि मालती मल्लि मलिंदनि हूली ; चंपक दाडिम नूत महाउर पाँडर डार डरावनि फूली , या मयमंतबसंत मैंचाहत कंत चल्यो हमहीं किधौ भूली॥५०॥

मल्लि = बेला । नूत = नूतन, नवीन । पाँडर = एक प्रकार की पीली चमेली। पाँडर स्वयं डरानेवाली नहीं है, किंतु विरह के कारण व्याकुलता प्रकट करने से डरानेवाली कही गई है। इस पद का अन्वय यों है-महाभूत चंपक दाडिम उर डरावनि पाँडर डार फूली।

उर सों लगी ही बधू बिधुर अधर चूम , मधुर सुधान बातें सुनिबे सुभाव की ;

बोलि उठीं कोकिला त्यों काकलिनु कलित कलापिन की कूकै कल कोमल बिराव की ।

  • पुष्प वृक्ष-विशेष।
  • मलै = मलय-पर्वत, जहाँ चंदन होता है। इसी से मलय

को भी मलयज मानकर चंदन कहते हैं ।

$ उन्मत्त ।

  • प्रयोजन यह है कि इतने कामोद्दीपक समय में पति कैसे

जा सकता है, सो यद्यपि उसके जाने का विचार प्रकट हो चुका है, तथापि नायिका समझती है कि उसके यथार्थ मानने में वह स्वयं भूल करती होगी, क्योंकि वह सत्य नहीं होगा।

x सुंदर मुलायम स्वर की कोकिला, मधुर तथा सुंदर मोरों की कूकें बोल उठीं (आवाज़ करने लगी)। काकली = सूक्षम मधुर स्फुट ध्वनि।