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पृष्ठ:देव-सुधा.djvu/५२

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देव-सुधा
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अंब-कुल बकुल समोड़ि पीड़ि पाड़रनि मल्लिकानि मीडि घन घूमत फिरत है;

दुमन-दुमन दल दूमत मधुप देव, सुमनसुमन मुख चूमत फिरत है ॥ ५३ ॥

अंब-कुल-आम-वृत्तों का समूह। पाइरनि पाँडरी ( एक पुष्प )। दुमन वृक्षों (द्र मों) को। तूमत- यह शब्द 'तूमना-क्रिया-पद से लिया गया है, धुनते हुए का प्रयोजन है । विरह-वेदना व्यंजित की गई है। सकरन = सकारे ; प्रातःकाल । समीडि = सम्यक्- प्रकारेण मीड़ि (मलकर ) । दूमत = हिलाता हुश्रा । यहाँ दुमत को देहलीदीपकन्यायेन द्रमों तथा भ्रमर, दोनो पर आरोपित करके यह भी अर्थ कर सकते हैं कि वृक्षों तथा भ्रमरों, दोनो को पवन हिलाता है।

सजोगिन की तू हरै उर-पीर, बियोगिन के सचरे उर-पीर, कली न खिलाइ करै मधु-पान, गलीन भरै मधुपान की भीर ; नचै मिलि बेलि बधूनि अचै सुरदेव नचावति आधि अधीर, तिहू गुन देखिए दोप-भरो अरे सीतल, मंद, सुगंध समीर॥५४॥ सचरै =बढ़ावे, उत्तेजित करे। मधुपान ( मधुप )-भौंरों को। अचै तप्त करके । प्राधि-मानसिक व्यथा।

  • चमेली के फूलों को मलकर ( उनकी सुगंध से ) घना

(होकर ) घुमता फिरता है।

  • भौंरों का देवता पवन । पवन के संसर्ग से भ्रमरों के प्रिय

पुष्प प्रसन्न होते हैं, सो भ्रमर का पवन हितकर देवता हो सकता है।