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देव-सुधा


आइ गई भूक मंद मारुत की देव नव. मल्लिका मिलित मल पदुम के दाव की ;

ऊखली सुबासु गृह अखिल खिलन लागी , पलिका के आस-पास कलिका गुलाब की ॥ ५१ ।।

प्रातःकाल का वर्णन है । कलित कलापिन=सुदर मयूरों की। बिराव की ऊँचे स्वर में बोली की । बिधुर-काँपता हुआ। मल = मकरंद । मिलित मल पदुम के दावकी = कमल-वन के मकर द-सहित । ऊखली = उखरी = फैली।

स्याम के संग सदा हम डोलैं जहाँ पिक बोलें, अलीगन गुजैं, लाहनि माह उछाहनि सों छहरैं जहँ पीरी पराग की पुजै; बेलिन मैं, रसकेलिन मैं, कवि देव कछू चित की गति लुज, कालिंदी-कूल महा अनुकूल ते फूलती मंजुल बंजुल कुजै ॥५२॥ लाहनि माह = मंगल से, अर्थात् अानंद-सहित । उछाहनि सों= उत्साह-सहित । बंजुल = अशोक-वृक्ष ।

(६)
समीर

अरुन उदोत सकरन है अरुन नैन तरुन-तरुन तन तूमत फिरत है,

कुज-कुज केलि कै नबेली बाल बेलिन सों नायक पवन वन झूमत फिरत है;

  • प्रातःकाल अरुण के उदय में होकर ( निकलकर) ( रात

के जगे हुए) लाल नेत्रवाले प्रत्येक युवक का शरीर धुनता फिरता है, अर्थात् प्रातःकाल उनका अपनी प्यारियों से वियोग हो जाता है, जिससे सुखद पवन भी उनको दुखद हो पड़ता है।