पृष्ठ:देव-सुधा.djvu/६३

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देव-सुधा

कुले कमलन पर नाचत बिमल अलि , कम ना विसाल में प्रकास रति-कंत को ।

त्रिविध समीर चलै, सजल सरीर देव, सुखद निनाद बाद आनँद अनंत को ;

भीतरे भवन बास रहे उपबन औ' मिसिर निसि बास रहै बासर बसंत कोक।७३।।

मयमंत = उन्मत्त (मद-युक्त )। कमला = विभूति । निनाद % शब्द । बाद = व्यर्थ । इस श्रानंद के सामने ब्रह्मानंद-पर्यंत व्यर्थ है। फले अनारन पाँडर डारन, देखत देव महाडरु माँचें , माधुरी झौरन अंब के बौरन भौरन के गन मंत्र-से बाँचें ; लागि उडै बिरहागिन की कचनारन बीच अचानक आंचें , साँचे हुँकारि पुकारि पिकी कहैं नाचे बनेगी बसंत की पाँचैं।।७४।।

फूलि उठो बृदाबन, भूलि उठे खग, मृग सूलि उठे, उर बिरहागि बगराई है;

गुंजरे करत अलि-पुंज कुंज-कुज धुनि, मंजु पिक-पुंज नूत मंजरी सुहाई है।

बाल बनमाल फूल-माल विकसंत गिह- संत मुखी ब्रज मैं वसंत-ऋतु आई है ;

नंद के नँदन ब्रजचंद को बदन देखे सदन-सदन देव मदन - दुहाई है ।। ७५ ।।

  • शिशिर निशि भीतरे भवन बास रहे औ' बासर बसंत उप-

बन बास रहे । प्रयोजन यह कि शिशिर को निशि में भवन की मुख्यता है, और वसंत के दिन में उपवन की।