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पृष्ठ:देव-सुधा.djvu/६५

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देव-सुधा

लोग-लुगाइन होरी लगाइ मिलामिनी चारु न मेटत ही बन्यौ, देवजू चंदन-चूर कपूर लिलारन लै लै लपेटत ही बन्यौ । ये इहि औमर पाए इहाँ समुहाइ डियो न समेटत ही बन्यो , कोनी अनाकनि औमुख मोरिपैजारिभुजाभटभेटतहीबन्यौ॥७॥

गुप्ता नायिका है। चारु = चार, चाल, रस्म । समुहाई = सामने आने पर।

आगा कमैं, उकसैं कुच ऊँचे, हँसै हुलसैं फुफुदीन की फू दे, चंदन ओट करै पिय जाट, पै अंचल अोट हगंचल मूंदें; देवजू कुकुम केसरि की मुख-बारिज बीच विराजती बू दे, बाढ़यो बिनोद गुलाल लैग' दनिमोद-भरीचहुँकोदनिकू दै।।६।।

ओट = तिलक, श्राड़ । मुख-बारिज = मुखारविंद । जोट = सहचर नायिका के। हुलसैं = आनंदित होती हैं । फुफुदीन की कँदै हुसैं = अंगिया या नीवी की गाँठे खुलने को चाहती हैं । कोदनि =ओर, पक्ष।

कछु और उपाय करै जनि री इतने दुग्व क्यों सुग्व सों भरिबी, फिर अंतक सो बिन कंत बसंत के प्रावत जीवत ही जरिबी ; बन बौरत बोरो ह्व जाउगी देव सुने धुनि कोकिल की डरिबी, जब डाति और अवीर भरी सुहहा कहिबीर कहाकरिबी ॥८॥

  • हे सखी ! कुछ और उपाय कर न ( अर्थात् अवश्य कर ),

क्योंकि इतने दुःख किस प्रकार सुख से पूरे होंगे ?

+ एक वसंत विरह में बीत चुका है, किंतु उसके यमराज-समान फिरकर ( दूसरी बार ) आते ही जीते-जी जल जाऊँगी।

+जब और सखियाँ अबीर से भरकर डोलंगी ( अर्थात् होलिकोत्सव श्रावेगा ), तब क्या करूँगी, सो हे सखी, कह ।