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देव-सुधा

सेत दुकलनि साँमरी बाम की पैनी चितौनि चुभै चित दौरो, पूरन पुन्य सराग मैं प्योधनी गाइए सीत निसागम गौरी।।८६।।

बीरें = बीड़े। पिक बौरी = कोयल को पागल करना अर्थात् उसका बहुत बोलना । साँमरी ( श्यामा) = यौवनमध्या। गौरी रागिनी का वर्णन है । छंद में उसके सामान, रूप, गाने के समय आदि का कथन है।

साँवरी सुदरि पीत दुकूल सु फले रसाल की मूल लसंती , लीन्हे रसाल की मंजरी हाथ, सुरंगित आँगी हिये हुलसंती ; पूरन प्रेम सुरंग मैं प्योधनी : संग-ही-सग बिलोल हसंती , है उत हैउत ही दिन माँझ समौ करि राख्यो बसंत बसंती ॥८॥

बसंती रागिनी का वर्णन है।

लसंती = शोभा देनेवाली। हुलसंती = प्रसन्नता से भरी हुई । हैउत ( हैवत ) = हेमंत-ऋतु ।

(१४)
उपमा-रूपकादि

पीक-भरी पनकै झनक, अलकै जुगड़ों सु लसैं भुज खोज को, छाय रखी छबि छैल को छाती मैं, छाप बनी कहुँ ओछे उरोज की;

  • ऋषभ, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत और निषाद स्वरों से

गौरी गाई जाती है । गौरी मालकौस की रागिनी ( भार्या ) है। उपयुक्त स्वरों का कथन “राग मैं प्योधनी" सूत्र से निकलता है।

+स, रि, ग, म, ध, नी । संपूर्ण जाति ।

$नायक की पलकों में किसी अन्य नायिका के चुंबन से पीक लगी हुई है, जो झलक रही है, अथच नायक के भुज में उसकी अलकें गड़ी हुई हैं, जो खोज के योग्य हैं, अर्थात् दृष्टव्य हैं।