सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:देव-सुधा.djvu/७१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
देव-सुधा
६७
 

ताहि चितैबड़री अँखियानते ती की चितौनिचलीअतिओज की, बालम ओर बिलोकिकै बाल दई मनो चोट सनाल सरोज की।

खंडिता नायिका का वर्णन है। अलक = बालों की लौ । ती की =स्त्री की। सनाल = डंठल-सहित । कुच-छाप बनने से गाढ़ालिंगन तथा कुचों की कठोरता के भाव प्रकट होते हैं ।

गोरी गरबीली उठी ऊँघत उघारे अग, देव पट नील कटि लपटी कपट-सी ;

भानु की किरन उदै सानु कंदरा ते छूटी, सोम-छवि करी तम-तोम मैं दपट-सी ।

सोने को सराँग स्याम पेटी ते लपेटो कटि, पन्ना ते निकसि पुखराज की झपट-सी ;

नील घन धूम पै तड़ित-दुति घूमि-घूमि धू धरि सों धाई दाव पावक लपट-सी ॥ ८६ ||

नायिका की सूर्योदय (प्रकाश) से उपमा दी गई है। उदैसानु = उदयाचल का शिखर । तोम = समूह । सस्म = शलाका (रेखा खींचने की एक सीधी लकड़ी)। तड़ित = बिजली । दाव =दौरहा। धुंधरि = अँधेरा।

  • पति की ओर नायिका ने देखकर ही मानो कमल-नाल-

समेत कमल उसके मारा,अर्थात् उसका धिक्कार किया। नेत्र कमल हैं,तथा निगाह ने जो दूरी पार की है,वही मानो कमल-नाल-सी रेखा बन गई है । नवीन उत्प्रेक्षा है।

+पना हरा होता है, और पुखराज पीला। इसी कारण श्याम पेटी से पीत शरीर की छवि की ऐसी उपमा कही गई है।