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पृष्ठ:देव-सुधा.djvu/७४

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देव-सुधा

बाल प्रबाल पला मिलिकै मनि मानिक मोतिन जोति जगावै*; लै रजनीपति बीच बिरामनि, दामिनि-दीप समीप दिखावै , जो निज न्यारी उज्यारी करै तब प्यारी के दंतन की दुति पावै+।

नायिका के दाँतों को कांति का वर्णन है। संभावन-अलंकार है। रूप के मंदिर तो मुख मैं मनि-दीपक-से हग अनुकूले , दर्पन में मनि, मान सलील, सुधाधर नील सरोन-से फूले; -- --

  • नवीन नगर के पल्ले में मणि-माणिक्य तथा मोती मिलकर

जो ज्योति निकलती है, उसे यदि कोई जाग्रत् करे, अर्थात् प्रकट करे। अोष्ठों की लाली के लिये मँगों तथा माणिक्य का विचार पाया है, और दंतों के लिये मणि तथा मोतियों का कथन हुआ है।

+ चंद्रमा ( मुख ) के बीच विराम-चिह्नों ( अोठों ) को लेकर उन्हीं के निकट ऐसी बिजली की दीप्ति दिखलावे, जिससे केवल उजियालापन पृथक किया गया हो ( अर्थात् चकाचौंध करनेवाली चमक उसमें न हो), तो नायिका के दंतों की शोभा का सादृश्य मिल सकता है। प्रोठों का रूप विराम-चिह्नों के समान है, और मुख की कांति चंद्रमा के समान ।

+तेरा मुख सौंदर्य का घर है, जिसमें , नेत्र मणि के दीपक-से प्रसन्न हैं।

$वे नेत्र आईना में मणि के समान दीप्तिमान् हैं, जल में मछली के समान चंचल तथा चंद्रमा में नीले कमल-से फूले हैं। यहाँ आईना, जल और चंद्रमा मुख के स्थान पर हैं, तथा मणि, मीन और नील कमल नेत्र के लिये आए हैं।