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देव-सुधा

देवजू सूरमुखी मृदु कूल के भीतर भौंर मनौ भ्रम भूले , अंक मयंकज के दल पंकज, पंकज में मनो पकज फलेक॥१४॥ नायिका के रूप ( नेत्रों ) का वर्णन है।

सूरमुखी = सूरजमुखी नाम का फूल । पंकज = कमल; एक जगह सुख से तथा दूसरी जगह आँखों से अभिप्राय है ।

घूंघट खलत अब ऊल टु है जैहै देव, उद्धत मनोज जग युद्ध जूटि परेगो ;

ऐसी न मुगक सिख को कहै अलोक बात, लोक तिहुँ लोक को लुनाई लूटि परैगो ।।

दैयन दुगव मुख नतर तरैयन को मंडलहु मटकि चटाकि टूटि परैगो ;

तो चितै सकोचि सोचिमोचि मृदु मूरछि के, छोर ते छपाकरु छता-मो छूटि परैगो $॥६५॥

  • मानो मयंकज (बुध ) के अंक ( गोदी ) में कमल-दल-से

हैं ( मुख के लिये बुध का कथन है, तथा नेत्रों के लिये कमल-दल का), तथा पंकज (मुख) में पंकज ( नेत्र) फूले हैं।

+ ऐसी शिखा (दीप्ति) देवलोक में भी नहीं (अलौकिक दीप्ति ) है, लोकोत्तर बात कौन कह सकता है ? सारा संसार ( देखते ही) तीनो लोकों की सुंदरता लूटने लग जायगा।

  • टेढ़ा होकर चटाका टूट पड़ेगा । जो वस्तु टूटने को होती है,

वह पहले टेढ़ी होकर तब टूटती है।

$तेरी ओर देखकर चंद्रमा संकुचित होकर, सोच करके, मोचि (लचककर) कुछ मूछित होकर अपनी सीमा से छाता की भाँति छूट पड़ेगा।