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देव-सुधा

घूघट के घटकी नटि की सुछुटी लटको लटकी गुन [दनि , केहू कहूँ नछुरै बिछुरै बिचरैनचुरै निचुरे जलबू दनि॥१.५॥

लट का वर्णन है।

खूदनि = कुचलना । घटकी = बीच में रहनेवाली । लटकी = लटकती हुई । [दनि = गुत्थी, गुड़ी, गाँठ ।

दूलहै सोहाग दिन तून है तिहारे, तिन तूल है, तिहारे सो अयान ही की भूल है;

भूल है न भाग की, प्रबाह सो दुकूल है , दुकूल है उज्यारो, देव प्यारो अनुकूल है ।

कूल है नदी को, प्रतिकूल है गुमान री , अहू लहै सु तौन जौन जोबन अहूल है ;

हूल है हिये मैं, पलहू लहै न चैन गै, निहारु पल दूल है, बिहारु पल दू लहै ॥ १०६॥

तिहारे दूलह को (तेरा) सोहाग दिन के तुल्या (समुज्ज्वल) है, तिनको तू लह (प्राप्त कर ), तेरे में अनजानपने ही की भूल है,भाग्य को भूल नहीं है । प्रवाह से ही दुकूल ( दो किनारेवाली नदी होती ) है (अर्थात् जब प्रेम प्रस्तुत है, तब किन्हीं बातों की शंका


  • नहीं रुकी।

+ न छुटती है। न हटती है। $ नहीं छिपती है। ++