पृष्ठ:देव-सुधा.djvu/९

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निवेदन

[ मेजर विंध्येश्वरीप्रसाद पांडेय बी० ए०, एल-एल० बी०, भूतपूर्व चीफ मिनिस्टर श्रोइछा-राज्य ]

व्रजभाषा के अनमोल पारखी, देवजी के ही शब्दों में “लाखन खरच रचि आखर खरीदने"वाले, काव्य-मर्मज्ञ, भूपाल श्रेष्ठ श्रीमान् एच० एच० श्रीसवाई महेंद्र महाराजा श्रीवीरसिंहदेव ओड़छानरेश ने गत वर्ष घोषित किया था कि वह प्रतिवर्ष हिंदी के सर्वोत्कृष्ट कान-ग्रंथ के रचयिता को २०००) का पुरस्कार प्रदान किया करेंगे। वसंतोत्सव के समय टोकप्पगढ़ में जो वार्षिक कवि-सम्मेलन होता है, उसमें इसी उदार श्राज्ञा के अनुसार श्रीमान् ने इस वर्ष यह २०००) का पुरस्कार 'दुलारे-दोहावली'-ग्रंथ पर दुलारेलाल भार्गव को प्रदान किया। पुरस्कार पाते समय दुलारेलालजी ने कवि-कुल-गुरु श्रीकालिदासवाली "यशसे विजिगीषूणाम्" उक्ति के अनुसार न केवल यह धन श्रीमान् के शुभ नाम पर हिंदी-हित में लगा दिया; वरन् इसी मूल्य की पुस्तकें भी अपने पास से देकर एक पुस्तकमाला प्रकाशित करने का विचार उसी समय श्रीमान् प्रोड़छा-नरेश को सेवा में प्रकट किया, जिसे श्रीमान् ने भी सहर्ष स्वीकार किया। इस संबंध में जो वक्तव्य श्रीदुलारेलालजी ने पुरस्कार प्राप्त करने पर टीकमगढ़ में दिया था, वह पुस्तक के अंत में दिया गया है। उसी के अनुसार, प्रायः एक ही मास के भीतर, 'देव-सुकवि-सुधा' नामक