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देव-सुधा
ग्रंथमाला का यह पहला पुष्प ('देव-सुधा') हिंदी-कोविदों के लाभार्थ प्रकाशित किया जाता है। माला का नाम 'देव सुकविसुधा' है ही, सो पहले इसमें 'देव-सुधा' नाम के ग्रंथ का ही गूंथा जाना उचित ही हुआ । यह ग्रंथ लखनऊ के अखिलभारतवर्षीय कवि-सम्मेलन के शुभ अवसर पर-१० मार्च, १९३५ को-श्रीमान् के कर कमलों में अर्पित किया गया।
वक्तव्य
(द्वितीयावृत्ति पर)
हर्ष की बात है, महाकवि देव की सुंदर कविताओं के इस संग्रह को हिंदी-संसार ने पसंद किया, जिससे हमें आज इसकी द्वितीयावृत्ति निकालनी पड़ रही है !
यू०पी० के शिक्षा-विभागों के हम बड़े कृतज्ञ हैं, जिन्होंने इस ग्रंथ को अपनी कोविद-परीक्षा में नियत करके अपनी गुण-ग्राहकता का परिचय दिया है। आशा है, अन्य शिक्षा संस्थाएँ और विश्वविद्यालय भी इसे कोर्स में रक्खेंगे।
कवि-कुटीर
लखनक, ७।३ । ४६
दुतारेलाल