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देव-सुधा

लंक = कटि । श्रम झलक = परिश्रम की झलक अर्थात् स्वेद-बिंदु। पदुम-पद दू पर = दानो चरणादों पर।

अंबर नील मिली कचरी मुकुता-लर दामिनी-सी दसहूँ दिसि, ता मधि माथे में हीरा गुह्यो सुगयो गडिसन को छबिसोंलिसि माँग के मूल बनो सिरफूत्त दब्यो झमकै कन कावलि सों घिसि , शृंगसुमेरु मिले रबि चंद ज्यों पावस मास प्रमावस कोनिसि ।

कत्ररी = लट । लिसि = मिल करके । शृंग सुमेरु-पर्वत की चोटी पर । अंबर नील-नीला कपड़ा, जो बेनी में लगा हुआ है। आकाश का प्रयोजन नहीं है, क्योंकि मुक्ता-लर की दामिनि से जो उपमा है, वह इस कारण से केवल एकदेशीय मानी जायगी कि आगे के पदों में केश-पाश का आकाश से रूपक चला नहीं है।

काम-गिरिकंड ते उठति धूम सिखा के चटक-चरनाली सारदा में पीत पंक* की ;

तनक-तनक अंक पाँति ज्यों कनक-पत्र, बाँचत ससंक लंक लीनी रीति रिंक की।

सूत्रम उदर में उदार निरै नाभी कून निकसति ताते ततो पातक अतंक की;

रंचक चितौत चित-बंचक चढ़ावै दोष, रोम- रेखा चौथिरसोम-रेखा ज्यों कलंक की ॥ १२७ ।।

  • कामगिरि-कुंड = कुचों के बीच का नीचा स्थान । यह रोमा-

वली काम-गिरि-कुंड से उठती हुई धूम-शिखा है, या पीत-पंक-युक्त सरस्वती नदी में चटक-पक्षी की चरणावली (चरण-चिह्न की. पंक्ति)।