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देव-सुधा
 

बादले की सारी दग्दावन किनारी जग- मगी जरतारी झीने झालरि के साज पर;

मोती गुहे कोरन चमक चहुँ ओरन ज्यों तोरन तरैयन को तानी द्विजराज पर ॥ १२४ ॥

हरे = धीरे-धीरे । बिलोल = चंचल । गोभा (कोभा )=कल्ला । बादले (बादला)= एक प्रकार का कपड़ा, जो तार व रेशम से बनता है । दरदावन ( दरदामन ) सब छोर । तोरन ( तोरण )-बंदनवार । सोधि सुधारि सुधाधरि देव रची नख ते सिख सुद्ध ससी-सी, सोने-से रंग, सलोने से अंगन कोने न नैन कसौटी कसी-सी; ही के बुझै सबही के सताप सु सौतिन को असगर अमीसी, भावती हौ हित ही कि हितू भई श्रावती हौ,अँखियानि,वसी-सी।

असराप = विना शाप । सराप = श्राप शाप । असीसी= आशीर्वाद दिया।

लागत समीर लंक लहकै समूल अंग फून-से दुकूलन सुगंध विथुरो परै;

इंदु - सो बदन मंद हाँसी सुधा-बिंदु भरपिंदु ज्यौं मुदित मकरंदन मुगे परै ।

ललित लिलार श्रम झलक अलक भार मग में धरत पग जावक घुगे परै;

देव मनि नूपुर-पदुम पद दू पर है , भू पर अनूप रूप रंग निचुगे परै ।। १२५ ॥

  • सौतों को आशीर्वाद देती है।