१४ देव और विहारी करेगा और इस स्वर-क्रम से वह हमारी कर्णेद्रिय को अपने काबू में करके श्रव्य काव्य द्वारा मानस-पट पर खींचे जानेवाले चित्र को ऐसा प्रस्फुटित करेगा कि वह चित्र देखते ही बन श्रावेगा । वह हमारी 'हिये' की आँखों को मानस-पट पर खिंचे हुए चित्र के ऊपर इशारेमात्र से ही गड़ा देगा। नेत्रंद्रिय के सहारे से चित्रकार ने चित्र दिखलाकर अपना काम पूरा किया। कवि ने वही कार्य कर्णेद्रिय का सहारा लेकर पूरा किया । संगीतकार ने उस पर और भी चोखा रंग चढ़ाया । कवि, चित्रकार और गायक महोदयों ने जब मिलकर कार्य किया, तो और भी सफलता हुई और जो कमी उनमें अलग-अलग रह जाती थी, वह भी जाती रही । अब कैसर का जीवित चित्र मौजूद है। वह बातें करता है, इशारे करता है और कैसर के सब कार्य करता है। किसी नाट्यशाला में जाकर यह सब देख लीजिए। यही दृश्य काव्य है । चित्र, संगीत एवं काव्य का संबंध कुछ इसी प्रकार का है। विषयांतर हो जाने के कारण इस पर अधिक नहीं लिखा जा सकता। । ऊपर के विवरण से प्रकट है कि काव्य के लिये शब्द बहुत ही श्रावश्यक हैं । शब्द नाना प्रकार के हैं और भिन्न-भिन्न देश के लोगों ने इन सबको भिन्न-भिन्न रीति से अपने किसी विचार, भाव, वस्तु या किसी क्रिया आदि का बोध कराने के लिये चुन रक्खा है। झाँझ मदंग से भी शब्द ही निकलता है और मनुष्य-पशु आदि जो कुछ बोलते हैं, वह भी शब्द ही है । मनुष्यों के शब्दों में भी विभिन्नता है । सब देशों के मनुष्य एक ही प्रकार के शब्दों द्वारा अपने भाव प्रकट नहीं करते । भाषा शब्दों से बनी है । अतएव संसार में भाषाएँ भी अनेक प्रकार की हैं और उनके बोलनेवाले केवल अपनी ही भाषा विना सीखे समझ सकते हैं, दूसरों की
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