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पृष्ठ:देव और बिहारी.djvu/१३३

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मर्मज्ञों के मत १-देव संवत् १६६७ में 'हिंदी-नवरत्न'-नामक एक समालोचनात्मक ग्रंथ प्रकाशित हुआ, जिसमें कविधर देवजी को कविवर विहारीलालजी से ऊँचा स्थान दिया गया। इसी ग्रंथ की समालोचना करते हुए सरस्वती-संपादक ने देवजी के बारे में अपनी यह राय दी- ___ "देव कवि महाकदि नहीं हैं, क्योंकि उन्होंने उच्च भावों का उद्बोधन नहीं किया, समाज, देश या धर्म को कविता द्वारा लाभ नहीं पहुँचाया और मानव-चरित्र को उलत नहीं किया । वह भी यदि महाकवि या कवि-रत्न माना जा सकेगा, तो प्रत्येक प्रांत में सैकड़ों नह कवि और ऋवि-रत्न विकल आवंगे।" - इसके उत्तर में नवरत्नकारों का कथन इस प्रकार है- "यह कहना हमारी समझ में अत्यंत अयोग्य है कि देव कवि के समान प्रत्येक प्रांत में सकड़ी कवि होंगे। xxx ऐसी राम प्रकट करना किसी विद्वान् मनुष्य को शोभा नहीं देता।xx उच्च भाव बहुत प्रकार के हो सकते हैं।xx काव्य से संबंध रखनेवाले लोग किसी भी बारीक नयाल को उच्च भाव कहेंगे।xx कविता-प्रेमियों के विचार से उच्च भावों का वर्णन हमने देववाले निबंध के नंबर ४ व ५ में पाँच खंडों द्वारा किया है (देखो नवरत्न )। इसके विषय में कुछ न कहकर उच्च भावों का प्रभाव कहना अनुचित है।xx देव ने कई धर्म-ग्रंथ रचे हैं।xx प्राकृतिक बातों का कथन ( देव की रचना में)प्रायः सभी ठौर मिलेगा। xx (देव) श्रृंगार प्रधान ऋवि अवश्य हैं। यदि इसी कारण कोई मनुष्य इनकी रच-