देव और विहारी
विहारीलाल धनश्याम से प्रार्थना करते हैं कि रस से सिंचन करके
इसको पुनः डहडही बनाइए । रूपक का श्राश्रय लेकर विरहिणी
का विरह मेटने का कवि का यह उपाय रमणीय है । दासजी ने
भी रूपक का पल्ला पकड़ा है। उनकी भी घनश्याम से प्रार्थना है कि
वृषभानजी की बारी (बञ्ची, फुलवारी ) को बरस करके प्रफुल्लित
करें, कुभलाने से उसकी रक्षा करें। पुष्प-वाटिका से संबंध रखनेवाले
भिन्न-भिन्न फूलों के नामों का कहीं श्लिष्ट और कहीं यों ही प्रयोग करके
उन्होंने अपनी उक्ति की रमणीयता को प्रकट किया है।
___ उभय कवियों की सभी उक्लियों का सारांश हमने ऊपर दे दिया
है। पुस्तक का कलेवर बढ़ न जाय, इसलिये हमने प्रत्येक उक्ति का
विस्तृत अर्थ लिखना उचित नहीं समझा ; पर इतना अर्थ अवश्य
दे दिया है, जिससे जो पाठक इन उक्तियों का अर्थ न जानते हों,
उनको इनके समझने में सुगमता हो । प्रत्येक छंद के काव्यांगों
पर भी हमने यहाँ पर विचार नहीं किया है । पाठकों से प्रार्थना है
कि वे इन उक्तियों को स्वयं ध्यानपूर्वक पढ़ें, इन पर विचार
करें । तत्पश्चात् इन पर अपना मत स्थिर करें। ।
___चोरी और सीनाजोरी का निर्णय करते समय पाठकों से प्रार्थना
है कि वे निन्न-लिखित बातों पर अवश्य ध्यान रक्खें-
(1) पूर्ववर्ती और परवर्ती कवि के भावों में ऐसा सादृश्य है
कि नहीं, जिससे यह नतीजा निकाला जा सके कि परवर्ती ने अपनी
रचना पूर्ववर्ती की कृति देखकर की है ?
(२) यदि भावापहरण का नतीजा निकालने में कोई आपत्ति नहीं
है, तो दूसरी विचारणीय बात यह है कि जिन परिच्छदों में दोनों भाव
ढके हैं, उनमें कौन-सा परिच्छद भाव के उपयुक्त है अर्थात् उसको विशेष
रमणीय बनानेवाला है ? परिच्छद से हमारा अभिप्राय भाषा
पृष्ठ:देव और बिहारी.djvu/१९०
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