देव-बिहारी तथा दास
है। निर्णन करते हैं कि जनता कल बोर है-
पा
रजफेरिया के रूप राधे को बनाइ लाई
गोपी मथुर ने मधुवन की तनानि हैं;
टेरि कहो ठान्ह सो, बल हो कंड च है तुम्हे,
याके कई लूटत सने है दधि-दनि मै;
रूम के न जाने, गए डगरि डराने "देव,"
स्याम ससबाने-से पकरि करे पानि मै;
छूटि नमो छल तो छबीला की किलोकनि मैं,
ढलो भई मोह वा लजीती मुसकान में ।
देव
चॉदनी मै चैत की सकल ब्रजवारि वारि,
"दास" मिलि रास-रस-खजनि भुलानी है ;
राधे मोर-मुकुट, तार, बनमाल धरि,
हरि है, करत तहाँ अकह कहानी है;
त्यो ही तिय-रूप हरि प्राय नहाँ थाय धरि,
कहिकै रिसौहै-चलौ, बोल्यो नँदरानी है।
सिगरी भगानी, पहिचानी प्यारी, मुसकानी,
यूटिगो सकुच, सुख लूटि सरसानी है।
दास
लेहु लला, उठि; लाई हा बॉलहि; लोक की लाजहिं सों लरि राखौ
फेरि इन्हैं सपनेहु न पैयत, लै अपने उर मैं धरि राखो।
"देव" लला, अबला नबला यह, चदकला-कठुला करि राखौ ;
आठहु सिद्धि, नवौ निधि लै, घर-बाहर-भीतर इ भरि राखौ ।
पृष्ठ:देव और बिहारी.djvu/१९३
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