पृष्ठ:देव और बिहारी.djvu/१९९

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विरह-वर्णन विरह-वर्णन में भी बिहारीलाल सर्वश्रेष्ठ स्वीकार किए गए हैं। इस संबंध में हमारा निवेदन केवल इतना ही है कि विहारीलाल की सर्व- श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिये जिस मार्ग का अवलंबन भाष्यकार महोदय ने लिया है, वह कविवर विहारीलाल को अपेक्षित स्थान पर नहीं पहुँचाता । ग्वाल, सुंदर, गंग या इसी श्रेणी के दो-चार और कवियों, की उक्ति यदि विहारीलाल की सूक्ति के सामने मलिन पड़ जाती है, तो इससे सूक्ति का गौरव क्या हुश्रा ? साधारण मिट्टी के तेल से जलनेवाला लैंप यदि गैस-लैंप के सामने दब गया, तो इसमें गैस- लैंप की कौन-सी वाहवाही है ? यह निर्विवाद है कि विहारीलाल इन सभी कवियों से बहुत बढ़कर हैं, फिर उनका और इनका मुकाबला कैसा? यदि सिंह मृग को दबा लेता है, तो इसमें सिंह के बलशाली होने का कौन-सा नया प्रमाण मिल गया? हाँ, यदि उसी वन में कई सिंह हों और उनमें से केसरी विशेष शेष सिंहों को कानन से भगा दे, तो निस्संदेह उस केसरी के बल की घोषणा की जायगी। अपने समान बलशाली को परास्त करने में ही गौरव है। अपने समान प्रतिभाशाली कवि की उक्ति से बढ़कर चमत्कार दिखला देना ही प्रशंसा का काम है । लेकिन क्या सुंदर, रसनिधि, ग्वाल, गंग, तोष, सेनापति, घासीराम, कालिदास, पद्माकर और विक्रम आदि ऐसे कवि हैं, जिनकी समता कविवर विहारीलालजी से की जा सके ? क्या गुलाब गुलमेंहदी को जीतकर उचित गर्व कर सकता है ? निश्चय ही केशवदास कविता-कानन के केसरी हैं। भाष्यकार ने उनके भी दो-चार छंदों से विहारी के दोहों की तुलना की है तथा