उपसंहार
देव और विहारी की तुलनात्मक समालोचना इस ग्रंथ में अत्यंत
स्थूल दृष्टि से की गई है। देवजी के ग्रंथों में माया, ज्ञान, संगीत
एवं नीति का भी विवेचन है । देवजी के कविता और उसके अंगों
को समझानेवाले लक्षण-लक्ष्य-संबंधी कई ग्रंथ बहुत ही उच्च कोटि
के हैं। परंतु इस प्रकार के ग्रंथों की यथार्थ समालोचना प्रस्तुत
पुस्तक में नहीं हो सकती । विहारीलाल ने इन विषयों पर कोई
स्वतंत्र रचना नहीं की । ऐसी दशा में इन विषयों की तुलना 'देव
और विहारी' में कैसे स्थान पा सकती है ? अतएव जो लोग इस
पुस्तक में प्राचार्य, संगीतवेत्ता एवं ज्ञानी देव का दर्शन करने की
अभिलाषा रखते हैं, उन्हें यदि निराश होना पड़े, तो कोई आश्चर्य
नहीं । कविवर विहारीलाल के साथ अन्याय किए बिना हम
देवजी की ऐसी रचनाओं की समालोचना कैसे करते ? जिन विषयों
पर उभय कविवरों की रचनाएँ हैं, उन्हीं पर हमने समालोचना
लिखने का साहस किया है। यदि संभव हुआ, तो 'देव-माया-
प्रपंच-नाटक', 'राग-रत्नाकर', 'नीति-वैराग्य-शतक' तथा 'शब्द-
रसायन' आदि पर एक पृथक् पुस्तक लिखी जायगी । इस पुस्तक
में तुलनात्मक समालोचना के लिये विहारी को छोड़कर और ही
कवियों का सहारा लेना पड़ेगा।
इस पुस्तक में जो कुछ समालोचना लिखी गई है, उससे यह
स्पष्ट है कि-
(१) भाषा-माधुर्य और प्रसाद गुण देवजी की कविता में
विहारीलालजी की कविता से अधिक पाया जाता है। भाषा का
randuto-
M
पृष्ठ:देव और बिहारी.djvu/२४६
Jump to navigation
Jump to search
यह पृष्ठ शोधित नही है
