पृष्ठ:देव और बिहारी.djvu/२४५

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भाषा २१३ के अर्थ समझने में आवश्यकता से अधिक परिश्रम तो नहीं करना पड़ता? उनमें लिष्टता की कालिमा तो नहीं लग गई है ? माधुर्य का मनोमोहक सौंदर्य दिखलाई पड़ता है या नहीं ? यदि ये गण देवजी की कविता में हैं, तो भाषा-विचार से देवजी का स्थान ऊँचा रहेगा । केवल शब्द-सुषमा को लक्ष्य में रखकर विहारी और देव के पद्य-पीयूष का आचमन कीजिए । हमें विश्वास है, देव का पीयूष ऑपको विशेष संतोष देगा।