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देव और विहारी
बोली में सचमुच ही शब्द-माधुर्य की कमी है । सो उक्त भाषा में
कविता करनेवालों को अपनी कविता में यह शब्द-माधुरी लानी
चाहिए।
शब्द-मधुरता हिंदी-कविता की बपौती है। इसके तिरस्कार से
कोई लाभ नहीं होना है। कविता-प्रेमियों को अपने इस सहज-
प्राप्त गुण को लातों मारकर दूर न कर देना चाहिए । इससे कविता
का कोई विशेष कल्याण नहीं होगा। माधुर्य और कविता का कुछ
संबंध नहीं है, यह समझना भारी भूल है। मधुरता कविता की
प्रधान सहायिका होने के कारण सर्वदेव अादरणीया है । ईश्वर
करे, हमारे पर्व कवियों की यह थाती आज कल के सयोग्य भाषाभि-
मानी कवियों द्वारा भली भाँति रक्षित रहे ।
निदान संजीवन-भाष्य में ब्रजभाषा-मधरता के विषय में जो कछ
लिखा है, वह महत्त्व-पूर्ण है । ऐसी समालोचना-पुस्तकों से प्राचीन
व्रजभाषा-काव्य का महान् उपकार हो सकता है। साहित्य की
उचित उन्नति के लिये समालोचकों की बड़ी आवश्यकता है।
अँगरेज़ी-भाषा के प्रसिद्ध समालोचक हैज़लिट ने अँगरेज़ी-कविता
के समालोचकों के विषय में एक गवेषणा-पूर्ण निबंध लिखा है।
उक्त निबंध की बहुत-सी बातें हिंदी-भाषा की वर्तमान समालोचना-
प्रणाली के विषय में भी ज्यों-की-त्यों कही जा सकती हैं। अतएव
उस निबंध के आधार पर हम यहाँ समालोचना के बारे में भी
कुछ लिखना उचित समझते हैं।
समालोचना
निष्पक्षपात-भाव से किसी वस्तु के गण-दूपणों की विवेचना
करना समालोजना है। इस प्रथा के अवलंबन से उत्तम विचारों
की पुष्टि तथा वृद्धि होती रहती है।
पृष्ठ:देव और बिहारी.djvu/२५
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