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देव और विहारी
ने संवत् १९४७ मैं अपना Modern Veinacular Literature of
Hindustan-नामक ग्रंथ प्रकाशित कराया था। इस ग्रंथ में इन्होंने
देवजी के विषय में लिखा है कि "according to native opinion he
wae the greatest poet of his time and indeed one of the great poets
of India " अर्थात् देवजी के देशवासी उन्हें अपने समय का अद्वितीय
कवि मानते हैं और वास्तव में भारतवर्ष के बड़े कवियों में उनकी
भी गणना होनी चाहिए । संवत् १६७४ में जयपुर से देवजी का
वैराग्य-शतक भी प्रकाशित हो गया । खेद का विषय है कि
देवजी का काव्य-रसायन ग्रंथ अब तक नहीं प्रकाशित हुआ।
शिवसिंहजी का कहना है कि उनके समय में हिंदी कविता पढ़नेवाले
विद्यार्थी इस ग्रंथ को पाठ्य पुस्तक की भाँति पढ़ते थे। संवत् १९४४
में बाँकीपुर के खड्गविलास-प्रेस से शृंगार-विलासिनी नामक एक
पुस्तक प्रकाशित हुई । पुस्तक संस्कृत में है और विषय नायिका.
भेद है । इसको ५० अंबिकादत्त व्यासजी ने संशोधित किया है।
इसके प्रावरण-पृष्ठ पर "इष्टिकापुर-निवासी श्रीदेवदत्त कवि-विर-
चिता" इत्यादि लिखा है तथा अंत में यह पद्य है-
देवदत्तकविरिष्टिकापुरवासी स चकार ;
ग्रंथमिमं वंशीधरद्विजकुलधुरं बभार ।
इस पुस्तक को हमने काशी-नागरी-प्रचारिणी सभा के पुस्तका-
लय में देखा था। उक्त पुस्तकालय के पुस्तकाध्यक्ष पं० केदारनाथजी
पाठक कहते थे कि इस पुस्तक की एक हस्त-लिखित प्रति छत्र-
पुर के मुंशी जगन्नाथप्रसादजी के पास है। उसमें कविवंश-संबंधी
और कई बातें दी हुई हैं, जिससे यह निष्कर्ष निकलता है कि पुस्तक
महाकवि देवजी की बनाई है । इटावे को ही संस्कृत में इष्टिकापुर
कहा गया है। यदि यही बात हो, तो मानना पड़ेगा कि देवजी को
संस्कृत का अच्छा अभ्यास था।
पृष्ठ:देव और बिहारी.djvu/२६४
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