पृष्ठ:देव और बिहारी.djvu/२९३

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परिशिष्ट सूनी के परम पदु, ऊनो के अनंत मदु , दूनो कै नदीस-नदु इंदिरा फुरै परी; महिमा मुनीसन की, संपति दिगीसन की , ईसन की सिद्धि, ब्रज बाथी बिथुरै परी । भादी की अँधेरी अधति, मथुरा के पथ , आई मनोरथ, "देव" देवकी दुरै परी : पारावार पूरन, अपार, परब्रह्मरासि , जसुदा के कोरे एक बारक कुरै परी । देवजी ने श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की सौभाग्यमयी शोभा का जो चित्र खींचा है, वह कितना आनंददायक है, इसके साक्षी सहृदयों के हृदय हैं। साकार भगवान् की लीलाओं का संक्षेप में अन्य विवरण देखिए। भक्तों के संतोष के लिये उन्हें क्या-क्या करना पड़ा है, इसको विचारिए । भगवान् का वह ब्रज-मंडल का विहार और गोप- गोपियों के बीच का वह आनंद-नृत्य क्या कभी भुलाया जा सकता है। एक बार हम भगवान् को विकराल विषधर कालीनाग के फणों पर थिरकते पाते हैं, तो दूसरी बार धमासान युद्ध के अव- सर पर अर्जुन के रथ का संचालन करते हुए देखते हैं । कहाँ मदनमोहन का वह मनोमोहन रूप और कहाँ अत्यंत भयंकर हिरण्यकशिपु की रौद्र-मूर्ति ! उधर गजोद्धार के समय सबसे निराला दर्शन ! कवि साकार भगवान् की किस-किस बात का वर्णन कर ! देखिए, महाराज दुर्योधन की अमृत-तुल्य , भोजन- सामग्री की उपेक्षा करके कृष्ण भगवान् विदुरजी के साग को कितने प्रेम से खा रहे हैं ! भक्क-शिरोमणि सुदामा नुम धन्य हो ! क्या और भी कोई ऐसे रूखे-सूखे तंदुल भगवान् को चत्रवा सकता था ! और, शबरी माता! तुमने तो अपनी भक्ति को पराकाष्ठा पर पहुँचा दिया ! वाह ! भगवान् रामचंद्र कितने प्रेम और आनंद के