देव और विहारी काव्य-जगत् में जब तक भाव-विकास और कला के नियमों में संघर्ष रहेगा, जब तक गंभीर, प्रौढ़ और सुसंस्कृत भाषा का प्रवाह एक ओर से और प्रसाद-पूर्ण, मधुर, भावमयी भाषा की नि:रिणी दूसरी ओर से आकर टकरावेगी, जब तक अलंकार को सर्वस्व मानने का आग्रह एक ओर से और रस की सर्वप्रधानता का सत्याग्रह दूसरी ओर से जारी रहेगा, तब तक देव और केशव की सत्ता बनी रहेगी। देव और केशव अमर हैं और उनकी बदौलत बजमाया की साहित्य-सुक्षा भी सुरक्षित है। देव की. दिव्य दृष्टि व्रजभाषा काव्य के गारी कवियों के शिरोमणि महाकवि देव का विचार-क्षेत्र बहुत ही विस्तृत है। उनके काव्य की इतिश्री नायिका-भेद से संबंध रखनेवाले वर्णनों ही से नहीं हो जाती । उन्होंने इस विशाल विश्व के प्रपंच को भली भाँति समझा था। उनकी कविता में स्थल-स्थल पर इस बात के प्रमाण विद्यमान हैं। ईश्वर-संबंधी ज्ञान और मत-मतांतरों के सिद्धांतों का स्पष्टी- करण भी देवजी की कविता में मौजूद है। ईश्वर के अवतार और साकारोपासना का चमत्कार देखना हो, तो देवजी का 'देव-चरित्र' ध्यान से पढ़ना चाहिए । इसी प्रकार अनेक प्रकार के धार्मिक मतभेदों की बहार 'देव-माया-प्रपंच' नाटक में देखने को मिलती है। वैराग्य-शतक' में निराकारोपासना, वेदांत का निदर्शन एवं सच्चा जगदर्शन नेत्रों के सामने नाचने लगता है। पाठकों के मनोरंजन के लिये देवजी की इस प्रकार की कविता के कुछ नमूने अहाँ पर उद्धृत किए जाते हैं। । पहले साकारोपासना को ही लीजिए । श्रीकृष्ण-जन्म का अव्य चित्र देखिए । देखिए, यशोदा माता का गोद में ब्रह्मराशि का कैसा सुंदर प्रादुर्भाव हुआ है-
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