द्वितीय संस्करण की भूमिका 'देव और विहारी' के इस दूसरे संस्करण को लेकर पाठकों की सेवा में उपस्थित होते हुए हमें परम हर्ष हो रहा है। पहले संस्क- रण का हिंदी-संसार ने जैसा आदर किया उससे हमें बहुत प्रोत्सा- हन मिला है। जिन पत्र-पत्रिकाओं तथा विद्वान् समालोचकों ने इस पुस्तक के विषय में अपनी सम्मतियाँ दी हैं उनके प्रति हम हार्दिक कृतज्ञता प्रकट करते हैं। कई समालोचनाओ में पुस्तक के दोषों का भी उल्लेख था । यथासाध्य हमने उनको दूर करने का प्रयत्न किया है, पर कई दोष ऐसे भी थे जिन्हें हम दोष न मान सके, इसलिये हमने उनको दूर करने में अपनेआपको असमर्थ पाया। समालोचकगण इसके लिये हमें क्षमा करें। पटना-विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने इस पुस्तक को बी० ए. ऑनर्स कोर्स में पाठ्य पुस्तक नियुक्त किया है। एतदर्थ हम उनको विशेष रूप से धन्यवाद देते हैं। हमें यह जानकर बड़ा हर्ष और संतोष हुआ है कि इस पुस्तक के पाठ से महाकवि देव की कविता को श्रोर लोगों का ध्यान विशेष रूप से आकर्षित हुआ है और सबसे बढ़कर बात तो यह है कि कॉलेजों के विद्यार्थियों ने देवजी की कविता को उत्साह के साथ अपनाया है। हमें विश्वास है कि योग्यता की यथार्थ परख होने पर देव की कविता का और भी अधिक प्रचार होगा। हम पर यह लांछन लगाया गया है कि हम देव का अनुचित पक्षपात करते हैं और विहारी की निंदा । यदि हिंदी-संसार को हमारी नेकनीयती पर विश्वास हो तो हम एक बार यह बात फिर
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