भूमिका
(३) जारत, बोरत, देत पुनि गाढ़ी चोट बिछोह ;
कियो समर मो जीव को आयसकर को लोह ।
बैरीसाल
(४) नाम पाहरू, दिवस-निसि ध्यान तुम्हार कपाट,
___लोचन निज पद-यत्रिका, प्रान जाहिं केहि बाट ?
तुलसी
(५) तरुनि अरुन ऍड़ीन के किरन-समूह उदोत ;
बेनी-मडन-मुकुत के पुंज गुंज-रुचि होत ।
मतिराम
(६) अमी-हलाहल-मद-भरे स्वेत, स्याम, रतनार;
__ जियत,मरत, झुकि-झुकि परत जेहि चितवत यक-बार ।
रसलीन
(७) पिय-वियोग तिय-डग जलधि जल-तरंग अधिकाय ;
___ बरुनि-मूल बेला परसि, बहुखो जात बिलाय ।
मतिराम
(८) बिन देखे दुख के चलें, देखे सुख के जाहि ।
कहो लाल, इन दृगन के अँसुश्रा क्यों ठहराहिं ?
मतिराम
(6) पीतम को मन भावती मिलति बाँह दे कठ ।
बाही छुटै न कठ ते, नाही छुटै न कंठ।।
मतिराम
१, ३, ५, ६, ७, ८ और वें दोहों में जो विदग्धता भरी है,
उस पर कृपा करके पाठक ध्यान दें।
हिंदी-कवियों के विरह-वर्णन का परिचय देते हुए भाष्यकार ने
अनेक कवियों के छंद उद्धृत किए हैं। पर अपनी उस नीति पर दृढ़
पृष्ठ:देव और बिहारी.djvu/५८
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