भूमिका
व्रजभाषा-दुर्बोधता की वृद्धि
जिस भाषा में प्राचीन समय का हिंदी-पद्य-काव्य लिखा गया है,
वह धीरे-धीरे श्राज कल के लोगों को दुर्बोध होती जाती है।
इसके कतिपय कारणों में से दो-एक ये हैं-
(१) शिक्षा विभाग द्वारा जो पाठ्य पुस्तकें नियत होती हैं,
उनमें महात्मा तुलसीदासजी की रामायण के कुछ अंशों को
छोड़कर जो कुछ पद्य-काव्य दिया जाता है, वह प्रायः उस श्रेणी
का होता है, जिससे विद्यार्थियों को प्राचीन पद्य-काव्य की भाषा
से परिचय प्राप्त नहीं होता और न उस पद्य-काव्य को स्वतंत्र रूप
से पढ़ने की और उनकी प्रवृत्ति ही होती है ।
(२) आज कल के कविता-प्रेमी इस बात पर बढ़ा ज़ोर देते
हैं कि नायिका-भेद या अलंकार-शास्त्र के ग्रंथों की कोई आवश्यकता
नहीं है। प्राचीन पद्य-काव्य को, भंगार-पूरित होने के कारण,
अश्लील बताकर वे उसकी निंदा किया करते है, जिससे लोगों को
स्वभावतः उससे घृणा उत्पन्न होती है और वे उसे पढ़ने की परवा
नहीं करते।
(३) सामयिक हिंदी-पत्रों के संपादक उन लोगों की कवि-
ताएँ अपने पत्रों में नहीं छापते, जो ब्रजभाषा आदि में कविता
करते हैं । इससे जन-समुदाय प्राचीन पद्य-काव्य की भाषा से
- हर्ष की बात है कि अब इस त्रुटि को दूर करने का उद्योग हो