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पृष्ठ:देव और बिहारी.djvu/६०

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भूमिका कुछ प्राचीन और नवीन विद्वान् भाष्यकार के मत के समर्थक होगें, तो कुछ ऐसे ही विद्वान् नवरत्नकार का मत माननेवाले भी अवश्य निकलेंगे । ऐसी दशा में अपनी सम्मति को ज़बर्दस्ती सर्वश्रेष्ठ मानकर प्रतिपक्षी को मूर्ख सिद्ध करने की चेष्टा कितनी समीचीन है, सो भाष्यकार ही बतला सकते हैं । यहाँ पर हम केवल 'एक आक्षेप के संबंध में विचार करते हैं । विहारीलाल का एक दोहा है- पावस-धन-अँधियार महँ रह्यो भेद नहि आन ; राति, द्योस जान्यो परत लाख चकई-चकवान । इसके संबंध में हिंदी-नवरत्न के पृष्ठ २३५* पर यह लिखा है- "इनके नेचर-निरीक्षण में केवल एक स्थान पर ग़लती समझ पड़ती है" और इसी दोहे के प्रति लक्ष्य करके आगे कहा गया है- "परंतु वर्षा-ऋतु में चक्रवाक नहीं होते । बहुत-से लोग कष्ट कल्पना करके यह दोष भी निकालना चाहते हैं, परंतु हम उस अर्थ को अग्राह्य मानते हैं।" यह कथन अक्षरशः ठीक है, परंतु भाष्यकार ने इसी समालोचना के संबंध में नवरत्न-कारों को बहुत-सी अनर्गल बातें सुनाई हैं। आपने साग्रह पूछा है कि आखिर वर्षा-ऋतु में चक्रवाक होते क्या हैं, क्या मर जाते हैं इत्यादि । इसके बाद सुभाषित रन-भांडागार' से ढूँढ़-खोजकर अापने वर्षा में चक्रवाक-स्थिति-समर्थक श्लोक भी 'उद्धत किए हैं। पर प्रश्न केवल दो हैं-(१) क्या चक्रवाक और 'हंस एक जाति के पक्षी हैं ?, (२) क्या हंसों के समान ही चक्र- वाक भी वर्षा-ऋतु में भारतवर्ष के बाहर चले जाते हैं ? इन दोनों ही प्रश्नों पर हम यहाँ पर संक्षेप से विचार करते हैं। दोनों पक्षी एक जाति के हैं या नहीं, इस संबंध में यह निवेदन करना है कि

  • द्वितीय संस्करण के पृष्ठाक २१७