देव और विहारी 'प्रधान है। एक अमेरिकन लेखक की राय है कि विवाह के बाद पुरुष की जीवन-यात्रा केवल अपने लिये न रहकर अपनी स्त्री और बच्चों के लिये भी हो जाती है। वह भविष्य में भी अपना स्मारक बनाए रखने के लिये उत्सुक होता है। वह अपने बच्चों को अपनी प्रात्मीयता का प्रतिनिधि बनाकर भविष्य की भेंट करता है। स्वार्थपरता पर प्रेम की विजय होती है । इस लेखक की राय है कि संसार में जितनी उच्च और श्रानंददायक अवस्थाएँ हैं, उनमें वैवाहिक अवस्था ही सबसे बढ़कर है । मनुष्यता का जिन उच्च-से-उच्च और पवित्र-से-पवित्र प्रेरणाओं से संबंध है, वे सब इस वैवाहिक बंधन द्वारा और भी दृढ़ हो जाती हैं।(सृजन-संबंधिनी प्रेरणामों से जाग्रत होकर ही मैदानों में घास लहलहाते लगती है। फूलों में सौंदर्य और सुगंध का विकास होता है। पक्षी चित्र-विचिन्न रंगों से रंजित होकर मधुर कलरव करने लगते हैं। झिल्ली की झंकार, कोयल की कूक तथा पपीहा की पुकार में इस प्रेमाह्वान की प्रतिध्वनि के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। ये सब-के-सब प्रेम के असंख्य गीत हैं। कवियों ने इस प्रेम का भली भाँति सत्कार किया है । नर-नारी के प्रेम को लेकर विश्व-साहित्य का कलेवर बहुत अधिक सजाया गया है। बाइ- बिल में इस प्रेम का वर्णन है। Books of Moses, Stories of Amon and Tamar, Lot and his daughters, Potiphat's wife and Joseph श्रादि इस कथन के सबूत में पेश किए जा सकते हैं। बाइबिल को कुछ लोग कवितामय मानते हैं, और वह भी ऐसी, जो सभी समय समान रूप से उपयोगी रहेगी । उसी में नर-नारी की प्रीति का ऐसा वर्णन है, जिसको पढ़कर भाज कल के अनेक पवित्रतावादी (Purist) नाक-भौं सिकोड़ सकते हैं। ग्रीस और रोम की प्राचीन कविता में भी प्रेम की वैसी ही मनक मौजूद है। शेक्सपियर का क्या कहना ! वहाँ तो नारी-प्रेम का,
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