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पृष्ठ:देव और बिहारी.djvu/७७

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रस-राज PREMIER ymposer-AK PNAMA PAPNA को ही लक्ष्य करके एक प्रसिद्ध अँगरेज़-लेखक ने लिखा है- "We must, indeed, always protest against the absurd confusion whereby nakedness of speech is regarded as equivalent to immorality, and not the less because it is often adopted in what are regarded as intellectual quarters" अर्थात् जो लोग नग्न वर्णन को ही दुश्चरित्रता मान बैठे हैं, उनके ऐसे विचारों का तीव्र प्रतिवाद होना चाहिए, विशेष करके जब ऐसी धारणा उन लोगों की है, जो शिक्षित कहे जाते हैं । सारांश यह कि दांपत्य-प्रेम से परिपूर्ण कविताओं को हम, आदर्श- वाद के विद्रोह की उपस्थिति में भी, बड़े आदर की दृष्टि से देखते हैं, जिन प्राचीन तथा नवीन कवियों ने ऐसे उच्च और विशुद्ध वर्णन किए हैं, उनकी भूरि-भरि सराहना करते हैं और मनुष्यता के विकास में उनका भी हाथ मानते हैं। इस संबंध में देवजी कहते हैं- "देव" सबै सुखदायक सपति, संपति सोई जु दंपति-जोरी; दंपति दीपति प्रेम-प्रतीति, प्रतीति की प्रोति सनेह-निचोरी । प्रीति तहाँ गुन-रीति-बिचार, बिचार की बानी सुधा-रस-बोरी: बानी को सार बखानो सिंगार, सिंगार को सार किसोर-किसोरी। दांपत्य-प्रेम का एक और विशुद्ध चित्र देखिए- सनमुख राखै, भरि आँखै रूप चाखै, सुचि ___रूप अभिलाखै मुख भाखै किधौं मौन सो ; "देव" दया-दासी करे सेवकिनि केती हम, सेवकिनि जानै भूलि है न सेज-भौन सो । पतिनी कै मानै पति नीके तौ भलीयै, जो न मानै अति नीके तौ, बॅधी है प्रान-पौन सो ; बिपति-हरन, सुख-संपति-करन, प्रान- पति परमसुर सों साभो कहौ कौन सो ? IndatiaTURegmprama PurAName Nn" IBALoserokarnessur