पृष्ठ:देव और बिहारी.djvu/९१

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भाव-सादृश्य अतएव तब साहित्य-संसार में इस प्रकार के भावापहरणकारी को जिस अपराध का अपराधी माना जाता है, विवश होकर उसे भी वही मानना पड़ेगा। संकोच के साथ कहना पड़ता है कि परवर्ती कवि ने पूर्ववर्ती कवि के भाव की चोरी की । उसकी रचना से प्रकट है कि उसमें पूर्ववर्ती कवि की सफाई नहीं है। ऐसी दशा में उसे पूर्ववर्ती कवि के भावों के अपनाने का उद्योग न करना चाहिए था। अंगन मै चदन चढ़ाय धनसार सेत, सारी छीरफेन-कैसी आमा उफनाति है ; राजत सचिर रुचि मोतिन के श्राभरन, कुसुम-कलित केस सोमा सरसाति है। कवि मतिराम प्रानप्यारे को मिलन चली, करिकै मनोरथनि मृदु मुसुकाति है। होति न लखाई निसि चंद की उज्यारी,मुख- चंद की उज्यारी तन-डॉही छपि जाति है । किंसुक के फूलन के पूलन विभूषित के, बॉधि लीनी बलया, बिगत कीनी बजनी : ता पर सवारयो सेत अंबर को डंबर, सिधारी स्याम-सन्निधि, निहारी काहू न जनी । छोर की तरंग की प्रभा को गहि लीनी तिय, कीन्ही छीरसिंधु छिति कातिक की रजनी । अानन-प्रभा ते तन-छोह हूं छपाए जात, ___ भौरन की भीर संग लाए जात सजनी । दो कवि शुक्राभिसारिका नायिका का वर्णन करते हैं। इनमें से एक पूर्ववर्ती है तथा दूसरा परवर्ती । पूर्ववर्ती कवि शुक्लाभिसारिका