पृष्ठ:देव और बिहारी.djvu/९५

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88 परिचय १४. देव-माया-प्रपंच नाटक-हस्त-लिखित ११. सुख-सागर-तरंग-छपा और हस्त-लिखित शुद्ध प्रति १६. जगद्दर्शन-पचीसी १७. आत्मदर्शन-पचीसी वैराग्य-शतक-बालचंद्र-यंत्रालय, ॥१८. तत्त्वदर्शन-पचीसी जयपुर का छपा ४११. प्रेम-पचीसी इनके अतिरिक्त देवजी के इतने ग्रंथों के नाम और विदित हैं पर वे सब प्राप्त नहीं हैं। २०. वृक्ष-विलास २६. नीति-शतक २१. पावस-विलास २७. नख-शिख-प्रेम-दर्शन २२. रसानंद-लहरी २८. शृंगार-विलासिनी (नागरी-प्रचा- २३. प्रेम-दीपिका रिणी सभा काशी के पुस्तकालय में ) २४. सुमिल-विनोद २६. वैद्यक ग्रंथ ( भिनगाके पुस्तकालय २५. राधिका-विलास में ) कहा जाता है, देवजी ने ५२ या ७२ ग्रंथों की रचना की थी। इनके ग्रंथों में सुख-सागर-तरंग, शब्द-रसायन, रस-विलास, प्रेम चंद्रिका और राग-रत्नाकर मुख्य हैं देवजी की कविता इनके समय में लोकप्रिय हुई थी अथवा नहीं, यह अविदित है; परंतु विहारीलाल की कविता के समान वह वर्तमान काल में लोक-प्रचलित कम पाई जाती है । बहुत-से लोग देव को इसी कारण साधारण कवि समझते हैं, मानो लोक-प्रियता कविता-उत्तमता की कसौटी है । इस कसौटी पर कसने से तो ब्रजवासीदास के व्रजविलास को बड़ा ही अनूठा काव्य मानना पड़ेगा । लोक-प्रचार से काव्य की उत्त- मता का कोई सरोकार नहीं है। आज दिन तुकबंदी की जो अनेक पुस्तकें लोक-प्रिय हो रही हैं, वे उत्तम काव्य नहीं कही जा सकतीं। चासर और रबर भी तो लोकप्रिय नहीं हो सके थे,