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परिचय
१४. देव-माया-प्रपंच नाटक-हस्त-लिखित
११. सुख-सागर-तरंग-छपा और हस्त-लिखित शुद्ध प्रति
१६. जगद्दर्शन-पचीसी
१७. आत्मदर्शन-पचीसी वैराग्य-शतक-बालचंद्र-यंत्रालय,
॥१८. तत्त्वदर्शन-पचीसी
जयपुर का छपा
४११. प्रेम-पचीसी
इनके अतिरिक्त देवजी के इतने ग्रंथों के नाम और विदित हैं
पर वे सब प्राप्त नहीं हैं।
२०. वृक्ष-विलास २६. नीति-शतक
२१. पावस-विलास २७. नख-शिख-प्रेम-दर्शन
२२. रसानंद-लहरी २८. शृंगार-विलासिनी (नागरी-प्रचा-
२३. प्रेम-दीपिका रिणी सभा काशी के पुस्तकालय में )
२४. सुमिल-विनोद २६. वैद्यक ग्रंथ ( भिनगाके पुस्तकालय
२५. राधिका-विलास में )
कहा जाता है, देवजी ने ५२ या ७२ ग्रंथों की रचना की थी।
इनके ग्रंथों में सुख-सागर-तरंग, शब्द-रसायन, रस-विलास, प्रेम
चंद्रिका और राग-रत्नाकर मुख्य हैं देवजी की कविता इनके समय
में लोकप्रिय हुई थी अथवा नहीं, यह अविदित है; परंतु विहारीलाल
की कविता के समान वह वर्तमान काल में लोक-प्रचलित कम
पाई जाती है । बहुत-से लोग देव को इसी कारण साधारण कवि
समझते हैं, मानो लोक-प्रियता कविता-उत्तमता की कसौटी है ।
इस कसौटी पर कसने से तो ब्रजवासीदास के व्रजविलास को बड़ा
ही अनूठा काव्य मानना पड़ेगा । लोक-प्रचार से काव्य की उत्त-
मता का कोई सरोकार नहीं है। आज दिन तुकबंदी की जो अनेक
पुस्तकें लोक-प्रिय हो रही हैं, वे उत्तम काव्य नहीं कही जा
सकतीं। चासर और रबर भी तो लोकप्रिय नहीं हो सके थे,
पृष्ठ:देव और बिहारी.djvu/९५
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